उत्तर प्रदेश में आज भाजपा जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा की जाएगी। भाजपा के प्रदेश चुनाव प्रभारी डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने इस संबंध में विस्तृत आदेश जारी किए हैं। खासतौर पर लखनऊ और गाजियाबाद में जिला और महानगर कार्यालय अलग-अलग होने के कारण वहां पर दो अलग-अलग कार्यक्रम आयोजित किए जाएंगे। शेष जिलों में एक ही कार्यक्रम के तहत नामों की घोषणा की जाएगी।
बैठकों के आयोजन के लिए विशेष निर्देश
डॉ. महेंद्र नाथ पांडेय ने निर्देश दिया है कि जिलों में दोपहर 2 बजे बैठक बुलाई जाए। इस बैठक में जिला के सभी पदाधिकारी, वरिष्ठ मोर्चा पदाधिकारी, मंडल अध्यक्ष, जिला प्रतिनिधि और अन्य महत्वपूर्ण पदाधिकारी मौजूद रहेंगे। मंच पर पर्यवेक्षक, जिला चुनाव अधिकारी, वरिष्ठ पदाधिकारी और मंत्रीगण उपस्थित रहेंगे। साथ ही वर्तमान और निवर्तमान जिला अध्यक्षों को भी आमंत्रित किया गया है ताकि नए अध्यक्ष का स्वागत सौहार्दपूर्ण माहौल में हो सके।
लखनऊ और गाजियाबाद के नामों की घोषणा बाद में
डॉ. पांडेय ने स्पष्ट किया है कि लखनऊ और गाजियाबाद में जिलाध्यक्षों के नामों की घोषणा आज नहीं की जाएगी। इन जिलों के लिए कार्यक्रम अलग तारीख पर आयोजित किया जाएगा। इससे अंदाजा लगाया जा सकता है कि इन क्षेत्रों में जिलाध्यक्षों के नामों को लेकर पार्टी संगठन के भीतर गहन विचार-विमर्श जारी है। भाजपा के इस नए कार्यक्रम के जरिए संगठन में अनुशासन और समन्वय को प्राथमिकता देने का प्रयास किया गया है।

भाजपा में जिलाध्यक्षों की घोषणा का नया फॉर्मूला
भाजपा ने इस बार जिलाध्यक्षों और महानगर अध्यक्षों के नामों की घोषणा के लिए नया तरीका अपनाया है। डॉ. पांडेय के निर्देशानुसार, यह घोषणा मौजूदा और पूर्व अध्यक्षों की उपस्थिति में ही की जाएगी ताकि नए अध्यक्ष का स्वागत सौहार्दपूर्ण माहौल में हो सके। पहली बार ऐसा हो रहा है कि भाजपा अपने संगठनात्मक जिलों में ही स्थानीय स्तर पर अध्यक्षों के नाम घोषित करेगी। इससे पहले सूची जारी करने की परंपरा थी। हालाँकि, जिन जिलों में सहमति नहीं बन पाई है, वहाँ अध्यक्षों के नाम बाद में घोषित किए जा सकते हैं।
कानपुर-बुंदेलखंड में बदलाव का असर
कानपुर-बुंदेलखंड क्षेत्र में डेढ़ वर्ष पहले ही 17 में से 13 जिलाध्यक्ष बदले गए थे, जिनमें कानपुर के तीनों जिलाध्यक्ष भी शामिल थे। हालांकि, इन नए पदाधिकारियों को लोकसभा चुनाव का सामना करना पड़ा, जिसमें पार्टी ने कानपुर और अकबरपुर सीटें जीतने में सफलता पाई। बावजूद इसके, इन जिलाध्यक्षों को पद से हटाए जाने की आशंका बनी हुई है, जबकि इन्हें अपने कार्यकाल में महज डेढ़ वर्ष का ही समय मिला है। इस फैसले से स्थानीय संगठन में हलचल मची हुई है।



