बेतवा नदी का जलस्तर तेजी से घट रहा है, जो विदिशा और आसपास के क्षेत्रों के लिए गंभीर चिंता का विषय है। यह नदी न केवल पानी का प्रमुख स्रोत है, बल्कि किसानों के खेतों और स्थानीय जलाशयों को भी भरपूर पानी उपलब्ध कराती है। यदि बेतवा का जलस्तर इसी तरह गिरता रहा, तो आने वाले समय में विदिशा को विकट जल संकट का सामना करना पड़ सकता है।
किसानों और जीव-जंतुओं पर संकट के बादल
बेतवा नदी के सूखने का असर सिर्फ इंसानों तक सीमित नहीं है, बल्कि इससे वन्यजीवन और कृषि पर भी गहरा प्रभाव पड़ेगा। जिन खेतों को बेतवा सींचती थी, वहां अब सूखे की मार पड़ सकती है। इसके अलावा, इस नदी पर आश्रित जीव-जंतु भी पानी की तलाश में भटकने को मजबूर हो गए हैं। यदि जल्द ही समाधान नहीं निकाला गया, तो यह संकट और भी गहरा सकता है।
बेतवा को बचाने के लिए जनभागीदारी जरूरी
बेतवा नदी को बचाने के लिए अब जनसहयोग और जागरूकता बेहद जरूरी हो गई है। स्थानीय प्रशासन के साथ-साथ आम लोगों को भी नदी के संरक्षण के लिए आगे आना होगा। जल संरक्षण अभियानों, पौधारोपण, और नदी की सफाई जैसे प्रयासों से बेतवा को फिर से जीवन दिया जा सकता है। यदि समय रहते कदम नहीं उठाए गए, तो विदिशा और आसपास के क्षेत्रों का भविष्य जल संकट के अंधकार में डूब सकता है।

बेतवा के संकट के लिए इंसानी गलतियां जिम्मेदार
बेतवा नदी के मौजूदा हालात केवल प्राकृतिक आपदा का परिणाम नहीं हैं, बल्कि इंसानी लापरवाही और गलत प्रबंधन ने भी इसे गंभीर संकट में डाल दिया है। जल संरक्षण की अनदेखी, अंधाधुंध पानी का दोहन और जलग्रहण क्षेत्रों में अतिक्रमण ने नदी के जलस्तर को गिरा दिया है। जिन स्थानों पर पानी संचित होता था, वे क्षेत्र अब बसाहट और निर्माण कार्यों के कारण खत्म हो चुके हैं। यदि समय रहते जल संरक्षण को लेकर गंभीर प्रयास किए जाते, तो आज बेतवा इस स्थिति में न होती।
बदलते मौसम का प्रभाव और प्रशासनिक लापरवाही
मध्य प्रदेश में बारिश के असंतुलित पैटर्न ने भी बेतवा नदी के जलस्तर को गहराई से प्रभावित किया है। मानसून का असंतुलन, कभी अत्यधिक बारिश तो कभी सूखा पड़ना, इस संकट को और गंभीर बना रहा है। इसके बावजूद प्रशासन ने समय रहते ठोस कदम नहीं उठाए। योजनाएं केवल कागजों पर सिमटकर रह गईं, जबकि जमीन पर उनका क्रियान्वयन बेहद कमजोर रहा। यदि प्रशासन ने प्रभावी नीतियां अपनाईं होतीं, तो बेतवा को बचाया जा सकता था।
बेतवा को बचाने के उपाय: जनभागीदारी है जरूरी
हालात बिगड़ने के बावजूद बेतवा नदी को बचाने के प्रयास अब भी सफल हो सकते हैं। नदी के किनारे वृक्षारोपण करना, जलग्रहण क्षेत्रों को संरक्षित करना और अतिक्रमण हटाना बेहद जरूरी है। वृक्षारोपण से जल वाष्पीकरण कम होगा, जिससे नदी का जलस्तर बनाए रखने में मदद मिलेगी। इसके अलावा, सरकार को बेतवा का चौड़ीकरण और गहरीकरण करके पानी के ठहराव को सुनिश्चित करना चाहिए। लेकिन इन सभी प्रयासों के साथ जनता की भागीदारी सबसे महत्वपूर्ण होगी, क्योंकि बिना जनसहयोग के यह लड़ाई अधूरी रह जाएगी।



