दशहरे पर आरएसएस के शताब्दी वर्ष की शुरुआत, राजधानी में 12 और प्रदेशभर में 850 से अधिक स्थानों पर पथ संचलन आयोजित।

दशहरे के अवसर पर राजधानी में 12 स्थानों पर पथ संचलन के साथ आरएसएस के शताब्दी वर्ष के कार्यक्रमों की शुरुआत हुई। राजधानी में कुल 373 और प्रदेशभर में पहले ही दिन 850 से अधिक स्थानों पर पथ संचलन निकाले गए। मुख्यमंत्री मोहन यादव ने कहा कि संघ की यह शताब्दी यात्रा त्याग, तपस्या, अनुशासन और निःस्वार्थ सेवा का प्रतीक है।
संघ की स्थापना और ध्येय
1925 में विजयादशमी के दिन स्थापित राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ का ध्येय राष्ट्र, संस्कृति और समाज की रक्षा रहा है। डॉ. केशव बलिराम हेडगेवार ने स्वतंत्रता संग्राम में सक्रिय रहते हुए अनुभव किया कि जब तक हर भारतीय के हृदय में स्वत्व और गौरव का भाव नहीं जागेगा, तब तक भारत अपने वैभव को प्राप्त नहीं कर सकता। यही संदेश आज संघ की शताब्दी यात्रा में भी प्रतिध्वनित हो रहा है।
संघ की ध्येय निष्ठा और चुनौतियां
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ की शताब्दी यात्रा उसकी अडिग ध्येय निष्ठा और संघर्षशीलता का प्रतीक है। वैचारिक और राजनैतिक हमलों से लेकर स्वयंसेवकों पर प्राणघातक हमलों तक, संघ ने हर चुनौती का सामना किया। स्वतंत्रता के बाद कई बार लगे प्रतिबंध, गांधी जी की हत्या में झूठा फंसाया जाना, आपातकाल और अयोध्या घटना के बाद के हालात भी संघ की गति रोक नहीं पाए। संघ न कभी रुका, न थका और न ही विचलित हुआ, बल्कि समाज और राष्ट्र निर्माण के अपने पथ पर निरंतर आगे बढ़ता रहा।
समाज निर्माण और पंच परिवर्तन का आह्वान
शताब्दी वर्ष में संघ केवल उत्सव नहीं मना रहा, बल्कि इसे राष्ट्र के परम वैभव और सांस्कृतिक पुनर्प्रतिष्ठा के लिए संकल्प दिवस बना रहा है। सरसंघचालक डॉ. मोहन भागवत ने समाज में “पंच परिवर्तन” का आह्वान किया है—स्वदेशी का बोध, नागरिक कर्तव्य, पर्यावरण संरक्षण, सामाजिक समरसता और कुटुम्ब प्रबोधन। ये सूत्र अनुशासित, संस्कारित और समरस समाज की दिशा तय करते हैं। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी इस यात्रा को विशेष महत्व देते हुए स्मृति सिक्का और डाक टिकट जारी किए, जो संघ के 100 वर्षों की सेवा और समर्पण की पहचान हैं।


