मध्यप्रदेश में वेतनवृद्धि को लेकर बड़ा विवाद सामने आया है। कर्मचारियों की वेतनवृद्धि की मांग अब कानूनी लड़ाई में बदल गई है। सेंटर ऑफ इंडियन ट्रेड यूनियन (सीटू) ने इस मामले को लेकर हाईकोर्ट की इंदौर खंडपीठ में याचिका दायर की है। सीटू ने 10 फरवरी को आए हाईकोर्ट के फैसले पर पुनर्विचार याचिका दाखिल करते हुए टेक्सटाइल और फुटवियर उद्योगों के श्रमिकों को बढ़ा हुआ वेतन देने की मांग की है।
सीटू ने सरकार के फैसले का किया विरोध
सीटू ने अपनी याचिका में मध्यप्रदेश सरकार द्वारा 19 जनवरी 2025 को जारी संशोधित अधिसूचना का कड़ा विरोध किया है। सीटू का कहना है कि इस संशोधन के कारण कई श्रमिकों को उचित वेतनवृद्धि का लाभ नहीं मिल पाएगा। संगठन ने अदालत से गुहार लगाई है कि सरकार के इस फैसले को निरस्त किया जाए और श्रमिकों के हक में उचित आदेश दिया जाए।
25 लाख श्रमिकों के लिए 11 माह के एरियर की मांग
सीटू ने अपनी याचिका में एमपी के करीब 25 लाख आउटसोर्स कर्मचारियों और श्रमिकों के लिए 11 महीने के एरियर की भी मांग की है। संगठन का कहना है कि इन श्रमिकों को उनके हक का वेतन जल्द से जल्द दिया जाए। इसके अलावा, टेक्सटाइल उद्योगों के श्रमिकों को भी इस वेतनवृद्धि का लाभ देने की मांग की गई है, ताकि उनके आर्थिक हितों की रक्षा हो सके।

वेतनवृद्धि अधिसूचना में बदलाव पर सीटू ने जताई आपत्ति
सीटू ने अपनी याचिका में कहा है कि अप्रैल 2024 में जारी अधिसूचना में सभी उद्योगों के कर्मचारियों और श्रमिकों को वेतनवृद्धि का लाभ दिया गया था। लेकिन 19 जनवरी 2025 को जारी संशोधित अधिसूचना में कुछ श्रमिकों को इससे वंचित कर दिया गया। सीटू ने इस संशोधन को अनुचित बताते हुए अदालत में चुनौती दी है। संगठन ने श्रमायुक्त को पत्र लिखकर मांग की है कि जो नियोजनकर्ता श्रमिकों को उनका एरियर देने से इनकार करें, उनसे श्रम विभाग के इंस्पेक्टर यह राशि दिलवाएं। सीटू ने इसे श्रमिकों का हक बताते हुए जरूरत पड़ने पर सुप्रीम कोर्ट तक जाने का संकल्प भी दोहराया है।
हाईकोर्ट के फैसले पर भी उठे सवाल
सीटू के प्रदेश महासचिव प्रमोद प्रधान ने बताया कि हाईकोर्ट ने 3 दिसंबर 2024 को न्यूनतम वेतन पर लगी रोक को समाप्त कर दिया था। ऐसे में सरकार को तुरंत वेतनवृद्धि का आदेश जारी करना चाहिए था, लेकिन इसके बजाय अधिसूचना में संशोधन कर दिया गया। प्रधान का आरोप है कि हाईकोर्ट के फैसले की गलत व्याख्या कर श्रमिकों को उनका हक मिलने से रोका जा रहा है। संगठन ने सरकार के इस कदम को श्रमिक विरोधी करार देते हुए कानूनी लड़ाई तेज करने का संकेत दिया है।



