मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर हाल ही में विधानसभा में पारित कुछ विधेयकों को लेकर चिंता जताई है।

मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर हाल ही में विधानसभा में पारित कुछ विधेयकों को लेकर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि सरकार द्वारा स्टाम्प शुल्क में 100% से 500% तक की वृद्धि जैसे निर्णय आमजन पर अतिरिक्त बोझ डालने वाले हैं। शपथ पत्र, प्रॉपर्टी एग्रीमेंट, पावर ऑफ अटॉर्नी, लाइसेंस नवीनीकरण जैसे आवश्यक दस्तावेजों पर भारी शुल्क वृद्धि आम लोगों की जीवनशैली पर प्रतिकूल प्रभाव डाल सकती है। पटवारी ने आग्रह किया है कि इन नीतियों पर पुनर्विचार कर जनता को राहत दी जाए।
जनता की तकलीफों पर संवेदनशीलता की जरूरत: पटवारी
अपने पत्र में पटवारी ने यह भी उल्लेख किया कि प्रदेश की जनता पहले से ही महंगाई, बेरोजगारी और प्रशासनिक भ्रष्टाचार जैसी चुनौतियों से जूझ रही है। उन्होंने मुख्यमंत्री से अपील की कि सरकार को राजस्व जुटाने के वैकल्पिक, संवेदनशील और जनहितैषी उपाय तलाशने चाहिए, ताकि भविष्य की पीढ़ियों पर कर्ज का बोझ न बढ़े। सरकारी खर्चों में मितव्ययिता और पारदर्शिता अपनाकर जनता के विश्वास को मजबूत किया जा सकता है। पत्र के माध्यम से पटवारी ने प्रदेश के हित में रचनात्मक संवाद की दिशा में एक सकारात्मक पहल की है।
जीतू पटवारी की सीएम से अपील
मध्यप्रदेश कांग्रेस अध्यक्ष जीतू पटवारी ने मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव को पत्र लिखकर स्टाम्प शुल्क में की गई भारी वृद्धि को लेकर जनभावनाएं साझा की हैं। उन्होंने सवाल उठाया कि क्या अब एक साधारण नागरिक के लिए जरूरी दस्तावेज बनवाना लग्ज़री बन गया है? उन्होंने आग्रह किया कि शासन का उद्देश्य कर वसूली से अधिक, जनसेवा और आर्थिक न्याय होना चाहिए। पत्र में उन्होंने जनहित को ध्यान में रखते हुए स्टाम्प शुल्क की हालिया वृद्धि को तत्काल वापस लेने की मांग की है। साथ ही, उन्होंने एक स्वतंत्र वित्तीय मूल्यांकन समिति के गठन का सुझाव भी दिया, ताकि शुल्क निर्धारण पारदर्शी और व्यावहारिक हो सके।
रचनात्मक सुझावों के साथ भ्रष्टाचार पर नियंत्रण की पहल
जीतू पटवारी ने पत्र में प्रदेश सरकार को सुझाव दिया है कि बीते तीन वर्षों में लिए गए कर्ज की सार्वजनिक समीक्षा हो, ताकि आम नागरिकों को इसकी शर्तों और उपयोगिता की स्पष्ट जानकारी मिल सके। उन्होंने प्रत्येक विभाग में 3rd पार्टी ऑडिट की व्यवस्था लागू करने, सरकारी खर्चों पर नियंत्रण और रजिस्ट्री ऑफिसों में पारदर्शिता सुनिश्चित करने जैसे व्यावहारिक और सकारात्मक कदमों की भी सिफारिश की है। साथ ही, समाज के कमजोर वर्गों—जैसे गरीब, किसान, वरिष्ठ नागरिक और दिव्यांगजनों—को दस्तावेजी प्रक्रिया में रियायत देने का सुझाव दिया गया है। उनका यह पत्र न केवल आलोचना, बल्कि समाधान और संवेदनशील शासन की दिशा में एक सार्थक संवाद का प्रस्ताव है।


