PCC चीफ जीतू पटवारी ने विदिशा की बदहाली को लेकर सरकार पर सीधा हमला बोला है। उन्होंने कहा कि जहां से मुख्यमंत्री निकले हों, वहां हालात इतने खराब होना शर्मनाक है। पटवारी ने आरोप लगाया कि विदिशा में जलभराव, स्वास्थ्य अव्यवस्था और श्मशान घाट की दुर्दशा सरकार की विफलता और भाजपा की संवेदनहीनता को उजागर करती है।

विदिशा जिला इन दिनों बाढ़ जैसी स्थिति से जूझ रहा है। लगातार हो रही अति-वृष्टि के कारण शहर के कई इलाकों में पानी भर गया है। घरों में घुटनों तक पानी घुस चुका है, स्कूलों को बंद करना पड़ा है और अस्पतालों में इलाज की समुचित व्यवस्था नहीं होने से बीमारियां फैल रही हैं। पूरे हालात प्रशासन की लापरवाही को उजागर कर रहे हैं। यह चिंता की बात है कि विदिशा वही क्षेत्र है, जिसे वर्षों तक प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री और वर्तमान केंद्रीय कृषि मंत्री ने प्रतिनिधित्व किया है।
श्मशान घाट की दुर्दशा ने खोली पोल
गंज बासौदा के बेहलोट बायपास स्थित श्मशान घाट की हालत बेहद शर्मनाक है। यहां अंतिम संस्कार के दौरान बारिश का पानी चिता पर टपकता रहा। टीन शेड इतना जर्जर हो चुका है कि लोग तिरपाल डालकर चिता को बचाने की कोशिश करते हैं, लेकिन आग की लपटों से तिरपाल भी जल गया। ऐसे हालातों में लोगों को अपने परिजनों का सम्मानपूर्वक अंतिम संस्कार करने तक की सुविधा नहीं मिल रही। पांचों विधानसभा सीटों पर भाजपा का कब्जा होने के बावजूद विदिशा के हालात व्यवस्था की असलियत बयां कर रहे हैं।
विदिशा में इलाज के नाम पर खिलवाड़
बारिश के बाद फैली बीमारियों से जूझ रही जनता को इलाज तक मयस्सर नहीं है। जिले के कई क्लीनिक और छोटे अस्पताल झोलाछाप डॉक्टरों के भरोसे चल रहे हैं। होम्योपैथ और आयुर्वेद की डिग्रीधारी लोग खुलेआम एलोपैथिक दवाइयां दे रहे हैं। इससे कई गंभीर मरीजों की जान खतरे में पड़ रही है। स्वास्थ्य विभाग की अनदेखी से हालात और बिगड़ते जा रहे हैं। यह न सिर्फ कानून का उल्लंघन है बल्कि गरीबों की ज़िंदगी के साथ सीधा खिलवाड़ है।
प्रशासन और सरकार दोनों नाकाम
नकली खाद और बीज की मार झेल रहे किसान पहले ही परेशान थे, अब जलभराव और ट्रैफिक अव्यवस्था ने आम लोगों की जिंदगी और मुश्किल कर दी है। शहर के प्रमुख चौराहों पर पुलिस नजर नहीं आती, बेरिकेड्स टूटे पड़े हैं और ट्रैफिक व्यवस्था पूरी तरह अस्त-व्यस्त है। हर साल बाढ़ के हालात बनते हैं, लेकिन नगर पालिका की तैयारियां महज कागजों तक सीमित रहती हैं। विदिशा की यह दुर्दशा प्रदेश की सरकार और प्रशासन—दोनों की नाकामी का प्रतीक बन चुकी है।


