मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश की उद्यानिकी क्षमताओं को और अधिक सशक्त बनाने के उद्देश्य से जिलेवार फसलों की मैपिंग और शासकीय भूमि पर उद्यान विकसित करने की योजना को गति देने के निर्देश दिए हैं। उनका कहना है कि आगामी 5 वर्षों में प्रदेश में उद्यानिकी फसलों का क्षेत्रफल 33 लाख 91 हजार हेक्टेयर तक बढ़ाने का लक्ष्य निर्धारित किया गया है। उन्होंने विश्वविद्यालयों और अन्य सरकारी संस्थानों की खाली जमीनों पर फल, फूल और अन्य उद्यानिकी फसलों के बाग लगाए जाने की कार्ययोजना तैयार करने पर ज़ोर दिया।
रीवा-रतलाम के उत्पादों को मिली वैश्विक पहचान
रीवा और रतलाम के प्रमुख उत्पादों को जीआई टैग मिलने से उनकी वैश्विक स्तर पर पहचान में वृद्धि हुई है, जिससे प्रदेश के अन्य जिलों को भी ऐसे मानकों पर काम करने की प्रेरणा मिलेगी। मुख्यमंत्री ने प्रदेश के सभी जिलों में उद्यानिकी और खाद्य प्र-संस्करण पर केंद्रित वर्कशॉप और मेलों के आयोजन की भी बात कही, ताकि किसान और उद्यमी अन्य जिलों की श्रेष्ठ तकनीकों व नवाचारों से लाभान्वित हो सकें। साथ ही, नर्सरी विकास को पीपीपी मॉडल पर आगे बढ़ाने के लिए ठोस कार्य योजना बनाने का निर्देश भी अधिकारियों को दिया गया है, जिससे निजी क्षेत्र की भागीदारी से आधुनिक और टिकाऊ नर्सरियों की स्थापना हो सके।

जीआई टैग प्रक्रिया में आएगी तेजी
मुख्यमंत्री डॉ. मोहन यादव ने प्रदेश के विशिष्ट कृषि उत्पादों को वैश्विक पहचान दिलाने के उद्देश्य से जीआई टैग प्रक्रिया में तेजी लाने के निर्देश अधिकारियों को दिए हैं। इंदौर के मालवी आलू और गराडू, जबलपुर के मटर और सिंघाड़ा सहित कई जिलों के उत्पादों को जीआई टैग दिलाने की प्रक्रिया को प्राथमिकता देने की बात कही गई है। मुख्यमंत्री ने यह भी स्पष्ट किया कि किसानों को उनकी उपज का उचित मूल्य दिलाना सरकार की प्राथमिकता है। इसके लिए सुविधाजनक स्थलों पर भंडारण की व्यवस्था और मंडियों में मूल्य जानकारी उपलब्ध कराने के तंत्र को विकसित किया जाएगा।
कृषि विकास को नई दिशा
नीमच और मंदसौर में औषधीय कृषि को बढ़ावा देने के लिए उद्यानिकी इंडस्ट्री कॉन्क्लेव आयोजित किए जाएंगे, जिससे इस क्षेत्र में संभावनाओं को नई दिशा मिल सके। मुख्यमंत्री ने यह भी कहा कि कृषि में श्रेष्ठ प्रदर्शन करने वाले किसानों को पुरस्कृत करने की व्यवस्था की जाए, जिससे उनकी मेहनत को सम्मान मिले और अन्य किसान भी प्रेरित हों। दीनदयाल शोध संस्थान जैसे कृषि विज्ञान केंद्रों के माध्यम से किसानों के साथ सतत संवाद और प्रशिक्षण की प्रक्रिया को भी मजबूती दी जाएगी। वर्तमान में प्रदेश में 22.72 लाख हेक्टेयर में उद्यानिकी फसलें ली जा रही हैं, जिसे आगामी पांच वर्षों में बढ़ाकर 33.91 लाख हेक्टेयर तक ले जाने का लक्ष्य रखा गया है।



